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त्यस्य॑ चिन्मह॒तो निर्मृ॒गस्य॒ वध॑र्जघान॒ तवि॑षीभि॒रिन्द्रः॑। य एक॒ इद॑प्र॒तिर्मन्य॑मान॒ आद॑स्माद॒न्यो अ॑जनिष्ट॒ तव्या॑न् ॥३॥

English Transliteration

tyasya cin mahato nir mṛgasya vadhar jaghāna taviṣībhir indraḥ | ya eka id apratir manyamāna ād asmād anyo ajaniṣṭa tavyān ||

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Pad Path

त्यस्य॑। चि॒त्। म॒ह॒तः। निः। मृ॒गस्य॑। वधः॑। ज॒घा॒न॒। तवि॑षीभिः। इन्द्रः॑। यः। एकः॑। इत्। अ॒प्र॒तिः। मन्य॑मानः। आत्। अ॒स्मा॒त्। अ॒न्यः। अ॒ज॒नि॒ष्ट॒। तव्या॑न् ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:32» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इन्द्रपदवाच्य धनुर्वेदवित् राजगुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यः) जो (एकः) एक (अप्रतिः) नहीं है विश्वास जिनके वह (मन्यमानः) आदर किये गये आप (तविषीभिः) सेना आदि बलों से जैसे (इन्द्रः) सेना का स्वामी (त्यस्य) उस (महतः) बड़े (मृगस्य) शीघ्र चलनेवाले मेघ का (वधः) नाश करते हैं जिसमें तदनुकूल (जघान) नाश करता है, वैसे हम लोगों को (चित्) भी प्रकट कीजिये (आत्) अनन्तर (अस्मात्) इससे जैसे (अन्यः) भिन्न और जन (निः) अत्यन्त (अजनिष्ट) उत्पन्न करता है, वैसे (इत्) ही आप (तव्यान्) बलों में उत्पन्न हम लोगों को ही उत्पन्न कीजिये अर्थात् प्रकट कीजिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे सूर्य्य मेघ को जीतकर अपने प्रताप को प्रकट करके सब प्राणियों का पालन करता है, वैसे ही धनुर्वेद की विद्या को जाननेवाला एक भी अनेकों को जीतकर प्रजाओं का पालन करे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ धनुर्वेदविद्राजगुणानाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! य एकोऽप्रतिर्मन्यमानस्त्वं तविषीभिर्यथेन्द्रस्त्यस्य महतो मृगस्य मेघस्य वधर्जघान तथाऽस्मांश्चिज्जनयादस्माद्यथाऽन्यो निरजनिष्ट तथेत्त्वमस्मान् तव्यान्निज्जनय ॥३॥

Word-Meaning: - (त्यस्य) तस्य (चित्) (महतः) (निः) (मृगस्य) सद्योगामिनः (वधः) घ्नन्ति यस्मिन् सः (जघान) हन्ति (तविषीभिः) सेनादिबलैः (इन्द्रः) सेनेशः (यः) (एकः) (इत्) (अप्रतिः) अविद्यमाना प्रतिः प्रतीतिर्यस्य सः (मन्यमानः) (आत्) (अस्मात्) (अन्यः) भिन्नः (अजनिष्ट) जनयति (तव्यान्) ये तविषि बले भवास्तान्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति सलोपः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यो मेघं विजित्य स्वप्रभावं जनयित्वा सर्वान् प्राणिनः पालयति तथैव धनुर्वेदविदेकोऽप्यनेकान् विजित्य प्रजाः पालयेत् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य मेघाला जिंकून आपला पराक्रम दर्शवितो व प्रजेच पालन करतो तसेच धनुर्वेद विद्या जाणणारा एकटा असेल तरी त्याने अनेकांना जिंकून प्रजेचे पालन करावे. ॥ ३ ॥